Friday, July 15, 2011

बग़ावत होगी इक दिन, तब मिलेंगे

किसी ने कर दिया छलनी है मुझको

कहीं पे जा के वो बैठा हुआ है

न रो इतना, कि तेरे आंसुओं पे

मेरा कातिल कहीं पे हँस रहा है

बचा के रख तू ये तकलीफ अपनी

धधकने दे इसे, शोले खिलेंगे

बस इतना कह दे जा के रहनुमा से

बग़ावत होगी इक दिन, तब मिलेंगे

10 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सुन्दर प्रस्तुति

Brajmohan Kumar said...

बगावत जरुरत है आज की. कबतक कोई यूँही छलनी होता रहेगा. ऐलान होना चाहिए बगावत का और उसकी गूंज इतनी हो कि अपने आरामतलबी में सोये हमारे रहनुमाओं की नींद ऐसी उड़े की वो फिर से सो ना पायें...

rajani kant said...

@बचा के रख तू ये तकलीफ अपनी
दर्द को पालो, निकालो नहीं
दर्द से ही बनेंगे हथियार हत्यारे अँधेरों के लिए

Anonymous said...

shukriya.

Nikhil Srivastava said...

Jabardast likha hai sir.

naveensisodiya said...

wow.. great

प्रिया said...

he he .....ham to sochte they qayamat ke dil mulakaat hoti hai :-)

agar mulkaat ki baat hai to bagawat hi sahi :-)

Saba said...

relieving...

पारुल "पुखराज" said...

बग़ावत होगी इक दिन, तब मिलेंगे


badhiya hai bhayi

Shakti said...

bahut hi khubsurat hai sai

(All photos by the author, except when credit mentioned otherwise)